West Bengal: भाजपा का अंदरूनी संकट और ममता की मुश्किलें

चुनाव से पहले मनोरंजन जगत के कई सितारे और तृणमूल कांग्रेस के अनेक नेता भाजपा में शामिल हुए थे. पार्टी ने उन्हें टिकट भी दिया था, लेकिन जीत बहुत कम को मिली. कई सिने तारिकाओं का नाम लेते हुए तथागत ने लिखा, “ये नगर नटी चुनाव से पहले तृणमूल के प्लेबॉय-नेता मदन मित्र के साथ नौकाविलास पर गई थीं. सब हार गई हैं. इन्हें टिकट किसने और क्यों दिया?

Source: News18Hindi Last updated on: May 8, 2021, 4:13 pm IST
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West Bengal: भाजपा का अंदरूनी संकट और ममता की मुश्किलें
प्रदेश में चुनाव बाद हिंसा में कम से कम 16 लोगों की जान गई है. इनमें ज्यादातर भाजपा और तृणमूल के कार्यकर्ता हैं. संयुक्त मोर्चा के एक नेता की भी मौत हुई है.

पश्चिम बंगाल में महीनों से जारी चुनावी हिंसा के बीच एक रोचक वाकया हुआ है. इसके केंद्र में हैं वरिष्ठ भाजपा नेता तथागत राय. तथागत उम्रदराज (75 वर्ष) हैं, बेबाक बोलने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इस बार उन्होंने यह बेबाकीपन अपनी ही पार्टी के खिलाफ दिखाया है. चुनाव में भाजपा की हार के बाद उन्होंने लगातार ऐसे ट्वीट किए कि पार्टी के लिए असहज स्थिति पैदा हो गई.


चुनाव से पहले मनोरंजन जगत के कई सितारे और तृणमूल कांग्रेस के अनेक नेता भाजपा में शामिल हुए थे. पार्टी ने उन्हें टिकट भी दिया था, लेकिन जीत बहुत कम को मिली. कई सिने तारिकाओं का नाम लेते हुए तथागत ने लिखा, “ये नगर नटी चुनाव से पहले तृणमूल के प्लेबॉय-नेता मदन मित्र के साथ नौकाविलास पर गई थीं. सब हार गई हैं. इन्हें टिकट किसने और क्यों दिया? दिलीप घोष, कैलाश विजयवर्गीय, शिवप्रकाश, अरविंद मेनन प्रभुगण क्या आप इस पर प्रकाश डालेंगे?”


उनकी इस भाषा पर तीखी प्रतिक्रिया हुई, लेकिन तथागत रुके नहीं. एक दिन बाद फिर लिखा, “कैलाश, दिलीप, शिव, अरविंद ने हमारे माननीय प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का नाम मिट्टी में मिला दिया… तृणमूल से जो कचरा आया था वह वापस जाएगा, और पार्टी में सुधार नहीं हुआ तो भाजपा के पुराने कार्यकर्ता भी चले जाएंगे. इस तरह प्रदेश में पार्टी का अंत हो जाएगा.” चुनावी हिंसा को लेकर ट्वीट में भी पार्टी नेताओं को निशाने पर लिया, “सुरक्षाकर्मियों से घिरे प्रदेश के जो नेता तृणमूलियों को धमकी देते थे – मार दूंगा, गाड़ दूंगा, दफना दूंगा – आज वे संकट में फंसे भाजपा कार्यकर्ताओं के फोन का जवाब नहीं दे रहे.” जाहिर है ऐसी टिप्पणी के बाद प्रदेश भाजपा नेताओं के लिए स्थिति असहज हो गई. उनकी शिकायत पर तथागत को दिल्ली बुलाया गया, तो यह बात भी ट्वीट कर दी, “पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने यथाशीघ्र दिल्ली बुलाया है… सबकी जानकारी के लिए.”


विपक्ष के नेता की लड़ाई और मुकुल राय का बर्ताव

इस बीच पार्टी में सुगबुगाहट तेज हो गई है कि विपक्ष का नेता कौन होगा. दो नाम चर्चा में हैं- शुभेंदु अधिकारी और मुकुल राय. शुभेंदु ने ममता को हराया है, इसके अलावा पार्टी नेतृत्व ने भी उन्हें जन नेता मान लिया है. दूसरी तरफ दो दशक से ज्यादा के राजनीतिक जीवन में पहला चुनाव जीतने वाले मुकुल राय हैं, जो कभी तृणमूल में नंबर दो हुआ करते थे. उनके समर्थकों का कहना है कि सदन में पांच साल तक लड़ने के लिए धैर्य जरूरी है, जो मुकुल राय में है.


मुकुल राय ने शुक्रवार को विधानसभा सदस्य के रूप में शपथ ली. इस दौरान उनका बर्ताव चौंकाने वाला था. सदन में जिस गेट से मुख्यमंत्री और मंत्रीगण प्रवेश करते हैं, उसी गेट से मुकुल भी आए और तृणमूल नेताओं से मिले. शपथ ग्रहण के बाद कुछ देर तक तृणमूल के प्रदेश अध्यक्ष सुब्रत बख्शी के साथ चर्चा भी की. क्या बात हुई, संवाददाताओं के यह पूछने पर उन्होंने जवाब दिया, “जीवन में कुछ दिन ऐसे भी आते हैं जब चुप रहना पड़ता है.” पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने शुक्रवार को विधानसभा भवन में ही नवनिर्वाचित विधायकों के साथ बैठक की, लेकिन मुकुल राय उसमें नहीं गए. वैसे, उस बैठक में शुभेंदु राय भी नहीं पहुंचे.


चर्चा यह भी है कि दिलीप घोष तृणमूल से आए इन दोनों नेताओं को विपक्ष का नेता बनाने के पक्ष में नहीं हैं. वे संघ के किसी करीबी को चाहते हैं, लेकिन संघ के करीबी विधायकों की संख्या बहुत कम है और उनमें ज्यादा अनुभव भी नहीं. सवाल यह भी है कि कम अनुभवी नेता के नीचे शुभेंदु और मुकुल राय जैसे दिग्गज कितना सहज महसूस करेंगे.


ममता की ‘अस्वीकार्य’ बनाने की कोशिश!

प्रदेश में चुनाव बाद हिंसा में कम से कम 16 लोगों की जान गई है. इनमें ज्यादातर भाजपा और तृणमूल के कार्यकर्ता हैं. संयुक्त मोर्चा के एक नेता की भी मौत हुई है. पश्चिम मिदनापुर में केंद्रीय मंत्री वी. मुरलीधरन की गाड़ी पर भी हमला हुआ. भाजपा और तृणमूल, दोनों पर हिंसा के आरोप लगे हैं और दोनों ने इनकार भी किया है. हालात का जायजा लेने केंद्र सरकार ने चार सदस्यों की टीम भेजी तो ममता ने कहा, “शपथ ग्रहण के 24 घंटे के भीतर केंद्रीय टीम भेजी गई, ऐसा पहली बार हुआ है. जब राज्य में ऑक्सीजन की कमी थी तब केंद्रीय टीम कहां थी उत्तर प्रदेश के हाथरस कांड के समय या दिल्ली दंगे के समय टीम कहां थी?” ममता का कहना है कि भाजपा अभी तक जनता की राय को स्वीकार नहीं कर पा रही है. उनका यह आरोप भी है कि भाजपा के कुछ केंद्रीय नेता हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं. शुभेंदु अधिकारी ने यह कह कर हिंसा को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की कि हिंदुओं को मारा जा रहा है.


हिंसा को लेकर सोशल मीडिया पर लगातार वीडियो जारी किए जा रहे हैं. इनमें कुछ वीडियो फर्जी भी निकले. एक फेसबुक पेज पर अभ्रो बनर्जी नाम के युवक को शहीद दिखाया गया, बाद में युवक स्वयं सामने आया और कहा कि उसे कुछ नहीं हुआ. इसी तरह, जिस महिला के साथ दुष्कर्म की बात कही जा रही थी उसने खुद इससे इनकार किया है. राज्य की सीआईडी ने हिंसा की फर्जी बातें फैलाने के खिलाफ एफआईआर दर्ज की हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि कुछ वीडियो फर्जी हो सकते हैं, लेकिन हत्याएं तो हुई ही हैं, चाहे वे जिस पार्टी के हों.


हिंसा का जायजा लेने जब केंद्रीय टीम बंगाल भेजी गई तो यह चर्चा भी होने लगी कि कहीं यह राष्ट्रपति शासन लगाने की दिशा में कदम तो नहीं. लेकिन भाजपा नेताओं ने इस बात से इनकार किया है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी. नड्डा ने भी कहा कि उनकी पार्टी राष्ट्रपति शासन की मांग नहीं करेगी. कुछ अन्य नेताओं के अनुसार चुनाव बाद हिंसा को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने और सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश सोची-समझी है. गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव में ममता की जबरदस्त जीत के बाद यह चर्चा भी चल रही है कि 2024 के आम चुनाव में ममता के अगुवाई में विपक्षी दल एकजुट हो सकते हैं. तृणमूल की जीत के बाद भाजपा-विरोधी कई दलों के नेताओं ने ममता को बधाई दी थी. कुछ नेताओं के अनुसार, ममता की छवि ऐसी दिखाने की कोशिश है जिसे बंगाल से बाहर के लोग स्वीकार न करें. अगर ऐसा है, तो प्रदेश में रह-रह कर टकराव के हालात बनते रहेंगे.


(डिस्क्लेमर: यह लेखक के निजी विचार हैं.)

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
सुनील सिंह

सुनील सिंहवरिष्ठ पत्रकार

लेखक का 30 वर्षों का पत्रकारिता का अनुभव है. दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं. बिजनेस और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.

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First published: May 8, 2021, 4:13 pm IST

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