जब वीपी सिंह ने खोला था मंडल का 'पिटारा' और मच गया था हाहाकार
Agency:News18Hindi
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मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने की घोषणा के साथ वीपी सिंह ने बदलाव का बिगुल फूंकते हुए जोरदार भाषण दिया था. वीपी सिंह ने कहा था, ‘हमने मंडल रूपी बच्चे को मां के पेट से बाहर निकाल दिया है. अब कोई माई का लाल इसे मां के पेट में नहीं डाल सकता.'

1990 का साल भारतीय समाज के लिए क्रांतिकारी बदलाव का साल रहा. 1989 के चुनाव में जनता दल ने अपने घोषणा पत्र में लिखा था कि अगर वो सत्ता में आती है तो मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू किया जाएगा. 1990 में वीपी सिंह की सरकार बनी और तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने अपने चुनावी वादे को पूरा किया. 7 अगस्त 1990 को वीपी सिंह की सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान कर दिया. इन सिफारिशों में पिछड़े वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई थी. सामाजिक बदलाव की दिशा में ये क्रांतिकारी कदम साबित हुआ.
मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने की घोषणा के साथ वीपी सिंह ने बदलाव का बिगुल फूंकते हुए जोरदार भाषण दिया था. वीपी सिंह ने कहा था, ‘हमने मंडल रूपी बच्चे को मां के पेट से बाहर निकाल दिया है. अब कोई माई का लाल इसे मां के पेट में नहीं डाल सकता. यह बच्चा अब प्रोग्रेस करेगा.’ मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद देशभर के सवर्ण छात्रों ने इसके खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन किया. देश की राजनीति में भूचाल आ गया. इसी दौर में मंडल की राजनीति के खिलाफ बीजेपी की कमंडल की राजनीति शुरू हुई.
आरक्षण लागू करने से पहले ही वीपी सिंह की सरकार गिर गई. लेकिन वीपी सिंह ने जो कहा था वो बात सच साबित हुई. 1991 में कांग्रेस की सरकार जीतकर आई और उसे मंडल कमीशन की सिफारिशों के आधार पर आरक्षण लागू करना पड़ा. मंडल कमीशन की रिपोर्ट पर पिछड़ों को मिले आरक्षण ने राजनीति का पूरा ग्रैमर बदल दिया.
मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने के बाद बदल गई राजनीति
अब तक सत्ता की राजनीति से वंचित पिछड़ा तबका राजनीति में मुखर होकर सामने आया. सत्ता में भागीदारी से पिछड़ों में आत्मस्वाभिमान और सम्मान की नई भावना जगी. इसी दौर में बिहार में लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं का उदय हुआ. लालू, नीतीश, शरद यादव जैसे नेताओं की राजनीति ने राष्ट्रीय स्तर पर छाप छोड़ी.
ज्ञानी जैल सिंह को मंडल कमीशन की रिपोर्ट सौंपते बीपी मंडल
पिछड़ों को मिले आरक्षण ने उनके सामाजिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. लेकिन सबसे ज्यादा असर राजनीति पर पड़ा. पिछड़ा वर्ग आधारित राजनीति ने एक तरफ उस वर्ग में सम्मान और गर्व का भाव भरा तो दूसरी तरफ सत्ता में हिस्सेदारी से उस वर्ग को नई ताकत मिली.
इस दौर के बारे में वीपी सिंह ने कहा था,‘भारत की राजनीति में आज जो हो रहा है, उसका कारण है सदियों से हाशिए पर रखे गए लोगों में उनके अधिकारों के प्रति जागृति लाना. अगले दस साल उन कौमों के रहेंगे, जिनको आजतक कुछ नहीं मिला. उससे अगले दस साल उनके होंगे, जिनको इन दस सालों में भी कुछ नहीं मिलेगा और ये आगे भी चलता रहेगा. ’
वीपी सिंह की बात आज सच साबित होती दिखाई पड़ती है. मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने के बाद 10 सालों तक पिछड़ों में जागृति आई और सामाजिक आर्थिक विकास में उन्होंने अपनी हिस्सेदारी पाई, इसके बाद कुछ छूट चुके तबकों ने इसी दिशा में प्रगति की. आज उस तबके को मुख्यधारा में शामिल करने की बात की जा रही है, जो अभी भी हाशिए पर खड़ा है. सामाजिक आर्थिक बराबरी लाने के लिए इस तरह का संतुलन जरूरी है.
ऐसे शुरू हुआ पिछड़ों को आरक्षण देने का सफर
मंडल कमीशन की रिपोर्ट से आई सामाजिक क्रांति की शुरुआत 78 के मोरारजी देसाई की सरकार में हुई थी. 20 दिसंबर 1978 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत 6 सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग बनाने की घोषणा की. इस आयोग के अध्यक्ष बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और तत्कालीन सांसद बीपी मंडल बनाए गए.
मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करने का काफी विरोध हुआ था
31 दिसंबर 1980 को आयोग ने 392 पन्नों की अपनी रिपोर्ट तत्कालीन गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह को सौंपी. 30 अप्रैल 1982 को राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद इसे सदन के पटल पर रखा गया. लेकिन इसके बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. न इंदिरा गांधी की सरकार ने इसे लागू किया न ही राजीव गांधी की सरकार ने.
राजीव गांधी की सरकार में बोफोर्स तोप सौदे दलाली मामले की जांच को आगे बढ़ाने की वजह से वीपी सिंह की पार्टी से खटपट हो गई. उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. फिर 1989 के चुनाव में जब जनतादल बना तो इसके घोषणापत्र में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने की बात लिखी गई. 7 अगस्त 1990 को वीपी सिंह सरकार ने अपने वादे पर अमल किया जो एक इतिहास बन गया.
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