क्या है वो बॉडी बैग, जिसमें कोरोना के मृतकों को रखा जा रहा है
Agency:News18Hindi
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कुछ रोज पहले ईरान (Iran) में दो नर्सें कोरोना वायरस (coronavirus) के जिंदा मरीज को बॉडी बैग (body bag) में डालती दिखीं. इसका वीडियो वायरल (viral video) हो गया था, लेकिन खबर की पुष्टि नहीं हो सकी.

कोरोना वायरस संक्रमित की मौत के बाद उसके अंतिम संस्कार के लिए अलग तरीका अपनाया जा रहा है. इसके तहत मृत शरीर को बॉडी बैग में डालकर जलाते हैं ताकि वायरस का इंफेक्शन न फैले.
हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Ministry of Health) ने एक गाइडलाइन तैयार की है, इसके तहत कोरोना के मरीज की मृत्यु के बाद उसकी अंतिम क्रिया कैसे होगी, इसपर निर्देश हैं. ये पहला मामला है जबकि सरकार अंतिम संस्कार के मामले में गाइडलाइन जारी कर रही है. इसकी वजह ये है कि अबतक वैज्ञानिक भी इससे अनजान हैं कि कोरोना के वायरस मौत के कितनी देर बाद तक शरीर में जिंदा रहते हैं.
यही वजह है कि WHO के दिशा-निर्देशों के आधार पर गाइडलाइन बनी, जिसमें मृतक को कैसे जलाया जाए, इसके बारे में बताया गया है. एक ओर इसमें परिवार वालों के लिए निर्देश हैं तो दूसरी तरफ अस्पताल स्टाफ के लिए सख्त हिदायत है. मेडिकल स्टाफ पर ही वायरस के संपर्क में आने का सबसे ज्यादा खतरा है. ऐसे में उनके लिए सावधानी बहुत जरूरी है.
क्या हैं बॉडी बैग
कोरोना के मरीज की मौत के बाद उसे आइसोलेशन वार्ड से श्मशानगृह ले जाने तक एक खास प्रक्रिया अपनाई जाती है. इसमें मृत शरीर को एक बैग में रखा जाता है, जिसे बॉडी बैग कहते हैं. ये बॉडी बैग WHO के कहे अनुसार दुनियाभर के संक्रमित देशों में इस्तेमाल हो रहे हैं. इन्हें cadaver pouch या human remains pouch (HRP) भी कहते हैं जो इस तरह से तैयार होते हैं कि औसत कद-काठी (लगभग साढ़े सात फीट) का इंसान इसमें आसानी से समा जाए. ये प्लास्टिक के बने कवर होते हैं जो लीक-पूफ्र होते हैं यानी जिसके अंदर न कुछ जा सकता है, न अंदर से बाहर आ सकता है.
इस तरह होते हैं तैयार
कम से कम 40 से 90 इंच मोटे (वजन के अनुसार बैग उपयोग होता है) इन बैग्स में जिप लगी होती है. किसी भी हाल में जिप टूटे या कहीं से भी छिद्रयुक्त बॉडी बैग के इस्तेमाल की सख्त मनाही होती है. बैग इस तरह से तैयार किए गए हैं कि इनमें किसी भी तरह से शरीर का कोई द्रव्य बाहर लीक न हो, जैसे, खून, या बगलम. मरीज की मौत बहुत खतरनाक संक्रामक रोग से जूझते हुए हुई हो तो बॉडी बैग को भी एक मोटे बैग में डाला जाता है तो अपारदर्शी होता है. इसे दोनों ओर से उठाने के लिए हैंडल्स लगी होती हैं ताकि संतुलन बना रहे और बैग किसी भी हाल में न फटे. अस्पताल के वार्ड से मुर्दाघर और वहां से दाहगृह पहुंचाने से पहले ही बॉडी बैग के ऊपर लेबलिंग करनी होती है ताकि पता चले कि लाश किस व्यक्ति की है. कोरोना के मामले में लगातार होती मौतों के बीच ये और भी जरूरी माना जा रहा है.
पहले भी था कंसेप्ट
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई मौतों में गद्दों और मोटी सूती चादरों में शवों को लपेटकर यहां से वहां ले जाया जाता था ताकि शव को अगर कोई बीमारी हुई हो तो वो न फैले. खासकर स्पेनिश फ्लू फैलने पर ये कंसेप्ट और बढ़ा. पैरॉशूट की कैनॉपी और कैनवास में भी शवों को लपेटा जाने लगा. धीरे-धीरे इनकी जगह रबड़ ने ली और फिर बाकायदा इंसानी आकार के बैग बनाए जाने लगे. वैसे साल 1982 में यूके और अर्जेंटिना के बीच चले Falklands War में भी बॉडी बैग का जमकर उपयोग हुआ था. तब 10 हफ्तों तक लगातार चली लड़ाई के कारण चूंकि सैनिक अपनी जगह छोड़ नहीं सकते थे इसलिए मृत सैनिकों को बॉडी बैग्स में डालकर एक जगह जमा कर दिया गया. युद्ध खत्म होने के बाद शव इकट्ठा किए गए और पूरे सैनिक सम्मान के साथ अंतिम क्रिया हुई.
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हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Ministry of Health) ने एक गाइडलाइन तैयार की है, इसके तहत कोरोना के मरीज की मृत्यु के बाद उसकी अंतिम क्रिया कैसे होगी, इसपर निर्देश हैं. ये पहला मामला है जबकि सरकार अंतिम संस्कार के मामले में गाइडलाइन जारी कर रही है. इसकी वजह ये है कि अबतक वैज्ञानिक भी इससे अनजान हैं कि कोरोना के वायरस मौत के कितनी देर बाद तक शरीर में जिंदा रहते हैं.
यही वजह है कि WHO के दिशा-निर्देशों के आधार पर गाइडलाइन बनी, जिसमें मृतक को कैसे जलाया जाए, इसके बारे में बताया गया है. एक ओर इसमें परिवार वालों के लिए निर्देश हैं तो दूसरी तरफ अस्पताल स्टाफ के लिए सख्त हिदायत है. मेडिकल स्टाफ पर ही वायरस के संपर्क में आने का सबसे ज्यादा खतरा है. ऐसे में उनके लिए सावधानी बहुत जरूरी है.
मेडिकल स्टाफ पर ही वायरस के संपर्क में आने का सबसे ज्यादा खतरा है
क्या हैं बॉडी बैग
कोरोना के मरीज की मौत के बाद उसे आइसोलेशन वार्ड से श्मशानगृह ले जाने तक एक खास प्रक्रिया अपनाई जाती है. इसमें मृत शरीर को एक बैग में रखा जाता है, जिसे बॉडी बैग कहते हैं. ये बॉडी बैग WHO के कहे अनुसार दुनियाभर के संक्रमित देशों में इस्तेमाल हो रहे हैं. इन्हें cadaver pouch या human remains pouch (HRP) भी कहते हैं जो इस तरह से तैयार होते हैं कि औसत कद-काठी (लगभग साढ़े सात फीट) का इंसान इसमें आसानी से समा जाए. ये प्लास्टिक के बने कवर होते हैं जो लीक-पूफ्र होते हैं यानी जिसके अंदर न कुछ जा सकता है, न अंदर से बाहर आ सकता है.
इस तरह होते हैं तैयार
कम से कम 40 से 90 इंच मोटे (वजन के अनुसार बैग उपयोग होता है) इन बैग्स में जिप लगी होती है. किसी भी हाल में जिप टूटे या कहीं से भी छिद्रयुक्त बॉडी बैग के इस्तेमाल की सख्त मनाही होती है. बैग इस तरह से तैयार किए गए हैं कि इनमें किसी भी तरह से शरीर का कोई द्रव्य बाहर लीक न हो, जैसे, खून, या बगलम. मरीज की मौत बहुत खतरनाक संक्रामक रोग से जूझते हुए हुई हो तो बॉडी बैग को भी एक मोटे बैग में डाला जाता है तो अपारदर्शी होता है. इसे दोनों ओर से उठाने के लिए हैंडल्स लगी होती हैं ताकि संतुलन बना रहे और बैग किसी भी हाल में न फटे. अस्पताल के वार्ड से मुर्दाघर और वहां से दाहगृह पहुंचाने से पहले ही बॉडी बैग के ऊपर लेबलिंग करनी होती है ताकि पता चले कि लाश किस व्यक्ति की है. कोरोना के मामले में लगातार होती मौतों के बीच ये और भी जरूरी माना जा रहा है.
दाहगृह पहुंचाने से पहले ही बॉडी बैग के ऊपर लेबलिंग करनी होती है
पहले भी था कंसेप्ट
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई मौतों में गद्दों और मोटी सूती चादरों में शवों को लपेटकर यहां से वहां ले जाया जाता था ताकि शव को अगर कोई बीमारी हुई हो तो वो न फैले. खासकर स्पेनिश फ्लू फैलने पर ये कंसेप्ट और बढ़ा. पैरॉशूट की कैनॉपी और कैनवास में भी शवों को लपेटा जाने लगा. धीरे-धीरे इनकी जगह रबड़ ने ली और फिर बाकायदा इंसानी आकार के बैग बनाए जाने लगे. वैसे साल 1982 में यूके और अर्जेंटिना के बीच चले Falklands War में भी बॉडी बैग का जमकर उपयोग हुआ था. तब 10 हफ्तों तक लगातार चली लड़ाई के कारण चूंकि सैनिक अपनी जगह छोड़ नहीं सकते थे इसलिए मृत सैनिकों को बॉडी बैग्स में डालकर एक जगह जमा कर दिया गया. युद्ध खत्म होने के बाद शव इकट्ठा किए गए और पूरे सैनिक सम्मान के साथ अंतिम क्रिया हुई.
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