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World Water Day : वो 5 देश, जहां नल में पानी सबसे बढ़िया क्वलिटी का आता है

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विश्व जल दिवस विशेष : यकीनन भारत इस लिस्ट में नहीं है. हैरत की बात तो यह है कि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी नहीं हैं. यह भी जानिए कि पानी की खराब क्वालिटी (Worst Quality Water) किन देशों में है और इस पूरी चर्चा में भारत किस जगह ठहरता है.

World Water Day : वो 5 देश, जहां नल में पानी सबसे बढ़िया क्वलिटी का आता हैपानी की नई रेट लिस्ट (Rate List) जारी कर दी गई है.
हैरान करने वाला फैक्ट यह है कि दुनिया में 2 अरब से ज़्यादा लोगों का पीने लायक पानी (Safe Drinking Water) नहीं मिल पाता. वहीं, कुछ देश ऐसे भी हैं, जहां नलों से पीने का पानी (Tap Water) सबसे बेहतरीन क्वालिटी का आता है. इनमें अमेरिका का नाम नहीं है. कैलिफोर्निया (Drinking Water Issues in US) में तो कुछ बस्तियां ऐसी हैं, जहां पीने के पानी की क्वालिटी (Water Quality) बड़ा मुद्दा है. आपको यहां उन देशों के बारे में भी बताएंगे, जहां पीने का पानी सबसे खराब क्वालिटी का मिलता है.

नल से आने वाली पानी की शुद्धता मुख्य रूप से दो बातों पर निर्भर करती है : पहली तो उस पानी का सोर्स क्या रहा और दूसरी यह कि वह पानी फिल्टर के कितने और कैसे स्तरों से गुज़रकर नल में पहुंचा. नल के शुद्ध पानी के मामले में कुछ देश कुदरती तौर पर समृद्ध हैं क्योंकि वहां झीलें, ग्लेशियर और बारिश के पानी से लबरेज़ नदियां हैं, तो कुछ देशों ने तकनीक को ठीक से इस्तेमाल करते हुए पानी की क्वालिटी को बेहतरीन बनाया है.

1. न्यूज़ीलैंड
पूरी दुनिया में इस देश के पानी को बहुत सुरक्षित माना जाता है. नल के पानी को शुद्ध करने के लिए न्यूज़ीलैंड का अपना एडवांस फिल्ट्रेशन सिस्टम है. यहां स्वास्थ्य मंत्रालय ने पानी की क्वालिटी को लेकर सख्त स्टैंडर्ड बना रखे हैं. पीने के पानी को 95% तक बेहतरीन क्वालिटी का बनाने के लिए 1995 में न्यूज़ीलैंड ने लक्ष्य बनाया था और 2015 में इस देश ने यह लक्ष्य हासिल किया था.
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2. स्विटज़रलैंड
यहां नलों में सबसे शुद्ध पानी मिलने के पीछे दोनों वजहें हैं यानी भौगोलिक संपन्नता के साथ ही बेहतरीन नीति भी. आबादी की ज़रूरत से ज़्यादा यहां शुद्ध पानी बारिश और ग्लेशियरों के ज़रिये उपलब्ध है. स्विटज़रलैंड में नल के पानी की क्वालिटी मिनरल वॉटर जैसी बताई जाती है और यह भी कि यहां पानी को ट्रीट नहीं किया जाता इसलिए पानी में ​केमिकल्स भी नहीं होते. यहां 40% पानी कुदरती जलस्रोतों, 20% भूमिगत और बाकी 20% पानी शुद्ध झीलों से मिलता है.
3. नॉर्वे
यहां 5% ज़मीन पर 4,55,000 झीलें हैं, 25% ज़मीन पर चार बड़ी नदियां हैं, जिन पर पावर प्लांट बने हैं, 0.7% क्षेत्र यानी करीब 2600 वर्ग किलोमीटर में ग्लेशियर हैं. नॉर्वे में 90% नल का पानी इन्हीं कुदरती सतही जलस्रोतों से मुहैया करवाया जाता है और बाकी 10% भूमिगत पानी नलों में आता है.
4. आइसलैंड
यहां जितना पानी है, उसका 95% ऐसा है, जो कभी प्रदूषण के संपर्क में रहा ही नहीं है और इस बात पर आइसलैंड के लोग बहुत गर्व भी करते हैं. 8100 वर्ग किलोमीटर के दायरे में ग्लेशियर फैले हुए हैं. पीने का 5% पानी अन्य जलस्रोतों से लिया जाता है, लेकिन इसके ट्रीटमेंट के लिए आइसलैंड में क्लोरीन का इस्तेमाल नहीं होता बल्कि सिर्फ यूवी ट्रीटमेंट किया जाता है.
5. जर्मनी
पानी की क्वालिटी पर 2018 की रिपेार्ट में कहा गया था कि जर्मनी में सिर्फ 0.01 फीसदी सैंपल ही कड़े क्वालिटी मानकों पर खरे नहीं उतरे. जर्मनी में पीने का करीब 69% पानी ज़मीन के अंदर के रिज़र्वायरों से लिया जाता है, जो मिनरल वॉटर क्वालिटी का होता है. यह पानी आइस एज के समय के जलस्रोतों का बताया जाता है, जिसे बगैर किसी ट्रीटमेंट के सीधे पिया जा सकता है. पानी की बाकी डिमांड नदियों से और 16% आपूर्ति आर्टिफिशियल रिचार्ज वॉटर से होती है.

जर्मनी, आइसलैंड जैसे कुछ देशों के कई जलस्रोत इतने साफ हैं कि इनसे सीधे ही शुद्ध पानी पिया जा सकता है.
इनके अलावा स्वीडन, डेनमार्क, ऑस्ट्रिया, फिनलैंड, सिंगापुर और कनाडा जैसे देशों में भी नल का पानी बढ़िया क्वालिटी का आता है. सबसे खराब क्वालिटी के पानी वाले देशों से पहले आपको बताते हैं कि नल का पानी किस आधार पर अच्छी क्वालिटी का माना जाता है.
कैसे तय होती है पानी की क्वालिटी?
नल से आने वाला पीने का पानी किस क्वालिटी का है, यह साइनाइड, कठोरता, मलजनित बैक्टीरिया, कुल घुलनशील ठोस यानी नमक, मेटल, पोषण की मात्रा, डिज़ॉल्व ऑक्सीज़न, ज़हरीले तत्वों, ऑर्गेनिक केमिकलों आदि की मात्रा पर निर्भर करता है. जहां वॉटर क्वालिटी के पुख्ता इंतज़ाम नहीं हैं, वहां अमूमन जल बोर्ड जैसी संस्थाएं तय करती हैं कि किन जलस्रोतों का पानी किस क्वालिटी का है और किस स्रोत को कितने संरक्षण की ज़रूरत है.
कहां है सबसे खराब पानी?
मेक्सिको की तीन चौथाई से ज़्यादा आबादी पैकेज्ड वॉटर का इस्तेमाल करती है. कोंगो में सिर्फ 21% लोगों को अपने रहने की जगह पर पानी मिल पाता है. सबसे अमीर और सबसे गरीब के बीच सफाई के स्तर को लेकर खाई पाकिस्तान में बहुत बड़ी है. भूटान में केवल एक तिहाई लोगों को बगैर प्रदूषण का पानी नसीब होता है.
अरबों की आबादी के लिए पीने का पानी बड़ी समस्या है.
नेपाल में साफ पानी बड़ा मुद्दा है तो घाना की करीब आधी आबादी सफाई और साफ पानी न होने की समस्या से जूझती है. कंबोडिया उन 18 देशों में जहां कई लोग उस पानी के भरोसे हैं, जो बस्तियों तक डिलीवर किया जाता है. नाईजीरिया में कई कोशिशों के बावजूद अब भी करीब 15 फीसदी लोग खराब पानी पीते हैं. इथोपिया में ग्रामीण इलाकों में पानी की क्वालिटी खराब है तो यूगांडा में पीने लायक पानी के लिए 40 फीसदी लोगों को आधे घंटे चलकर जाना होता है.
क्या है भारत की स्थिति?
साल 2019 में रिपोर्ट्स प्रकाशित हुई थीं कि नीति आयोग के वॉटर मैनेजमेंट इंडेक्स ने माना था कि 70 फीसदी भारत में जो पानी सप्लाई किया जाता है, वह दूषित होता है. वॉटरएड ने उसी साल जो वॉटर क्वालिटी इंडेक्स जारी किया था, उनमें 122 देशों की लिस्ट में भारत का नंबर 120वां था. यह भी कहा गया था कि भारत के 84 फीसदी घरों तक पानी की सप्लाई के लिए पाइप इन्फ्रास्ट्रक्चर के ज़रिये नहीं हो पा रही थी.
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