अनुसूचित जाति के इन लोगों के हाथ में है CM योगी के 'गोरखनाथ मंदिर' की पूरी व्यवस्था
Agency:News18Hindi
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बता दें कि गोरखनाथ मंदिर उन मंदिरों की विचारधारा से अलग है, जहां एससी का प्रवेश वर्जित होता है. इस मंदिर की ओर से जात-पात के खिलाफ लंबे समय से अभियान चलाया जा रहा है.

देश के मंदिरों में अनुसूचित जाति के लोगों को प्रवेश देने को लेकर कई विवाद सामने आ चुके हैं. इन्हीं के बीच गोरखपुर का गोरखनाथ मंदिर एक ऐसा मंदिर है, जहां की व्यवस्था अनुसूचित जाति के लोगों के दम पर चलती है. दरअसल, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का एससी से 'पुराना रिश्ता' है. योगी का एससी प्रेम दिल से है या सिर्फ दिखावा? इसकी एक बानगी देखिए. आपको शायद ही इस बात की जानकारी हो कि गोरखनाथ मंदिर के वर्तमान मुख्य पुजारी कमलनाथ भी दलित हैं. योगी के बाद वो मंदिर का सबसे अहम चेहरा हैं. इसी समाज के लोग मंदिर के मुख्य पदों पर आसीन हैं. चाहे वह मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में बाबा कमल नाथ हों, या गौशाला के प्रभारी परदेशी राम. यही नहीं मंदिर का मुख्य रसोइया से लेकर मीडिया प्रभारी विनय गौतम भी अनुसूचित जाति के ही है.
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बता दें कि गोरखनाथ मंदिर उन मंदिरों की विचारधारा से अलग है, जहां एससी का प्रवेश वर्जित होता है. इस मंदिर की ओर से जात-पात के खिलाफ लंबे समय से अभियान चलाया जा रहा है. योगी आदित्यनाथ का वनटांगियों से भी खास लगाव है. सांसद रहते हुए योगी ने सड़क से संसद तक इनके अधिकारों की लड़ाई लड़ी. इन्हें नागरिक अधिकार देने का मामला संसद में उठाया. ज्यादातर वनटांगिया दलित और पिछड़े वर्ग से हैं. योगी 11 साल से उन्हीं के साथ दीपावली मनाते हैं.
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मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में बाबा कमल नाथ ने न्यूज18 से बातचीत में बताया कि बीते 42 सालों से मंदिर की सेवा कर रहा हूं, वहीं अनुसूचित जाति का होने के बावजूद कभी भी मंदिर के अंदर मुझे अहसास नहीं हुआ. हमेशा सभी जातियों की तरह यहां पर सभी को बराबर सम्मान मिलता है. देश के मंदिरों में अनुसूचित जाति के लोगों को प्रवेश देने के सवाल पर कमल नाथ कहते हैं कि ये पूरी तरह से विरोधियों की साजिश है. जो देश को जाति के अधार पर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं.
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इसी कड़ी में गोरखनाथ मंदिर में स्थित गौशाला के प्रभारी परदेशी राम बताते हैं कि कई साल से मंदिर की सेवा करते हो गए. वहीं मंदिर के अंदर अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति के अधिकांश कर्मचारी काम कर रहे है, लेकिन भेदभाव कभी देखने को नहीं मिला. परदेशी राम ने बताया कि महाराज जी (सीएम योगी आदित्यनाथ) के मुख्य रसोइया से लेकर बाकी कर्मचारी अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति के है.
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दलित समाज से जुड़े विनय गौतम गोरखनाथ पीठ के फोटोग्राफर जर्नलिस्ट हैं. मीडिया से समन्वय की जिम्मेदारी इन्हीं के पास है. विनय वर्ष 2007 से इस पीठ और योगी आदित्यनाथ की सेवा में लगे हुए हैं. विनय ने बताया कि देवीपाटन मंदिर के महंत मिथलेश नाथ दलित हैं. जो इसी नाथ पीठ से जुड़े हुए है. उन्होंने बताया कि मंदिर के अंदर कभी भी धर्म का श्रदालु दर्शन कर सकता है. ऐसे में यह कहा जा सकता है की गोरक्षनाथ मंदिर में दलित ही नहीं बल्कि सर्व समाज के लोगों के लिए हमेशा खुला रहा है.
राजनीति में क्यों इतने महत्वपूर्ण हैं दलित
2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में 16.63 फीसदी अनुसूचित जाति और 8.6 फीसदी अनुसूचित जनजाति हैं. 150 से ज्यादा संसदीय सीटों पर एससी/एसटी का प्रभाव माना जाता है. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 46,859 गांव ऐसे हैं जहां दलितों की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है. 75,624 गांवों में उनकी आबादी 40 फीसदी से अधिक है. देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा की 84 सीटें एससी के लिए, जबकि 47 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. विधानसभाओं में 607 सीटें एससी और 554 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. इसलिए सबकी नजर दलित वोट बैंक पर लगी हुई है.
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बता दें कि गोरखनाथ मंदिर उन मंदिरों की विचारधारा से अलग है, जहां एससी का प्रवेश वर्जित होता है. इस मंदिर की ओर से जात-पात के खिलाफ लंबे समय से अभियान चलाया जा रहा है. योगी आदित्यनाथ का वनटांगियों से भी खास लगाव है. सांसद रहते हुए योगी ने सड़क से संसद तक इनके अधिकारों की लड़ाई लड़ी. इन्हें नागरिक अधिकार देने का मामला संसद में उठाया. ज्यादातर वनटांगिया दलित और पिछड़े वर्ग से हैं. योगी 11 साल से उन्हीं के साथ दीपावली मनाते हैं.
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मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में बाबा कमल नाथ ने न्यूज18 से बातचीत में बताया कि बीते 42 सालों से मंदिर की सेवा कर रहा हूं, वहीं अनुसूचित जाति का होने के बावजूद कभी भी मंदिर के अंदर मुझे अहसास नहीं हुआ. हमेशा सभी जातियों की तरह यहां पर सभी को बराबर सम्मान मिलता है. देश के मंदिरों में अनुसूचित जाति के लोगों को प्रवेश देने के सवाल पर कमल नाथ कहते हैं कि ये पूरी तरह से विरोधियों की साजिश है. जो देश को जाति के अधार पर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं.
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2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में 16.63 फीसदी अनुसूचित जाति और 8.6 फीसदी अनुसूचित जनजाति हैं. 150 से ज्यादा संसदीय सीटों पर एससी/एसटी का प्रभाव माना जाता है. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 46,859 गांव ऐसे हैं जहां दलितों की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है. 75,624 गांवों में उनकी आबादी 40 फीसदी से अधिक है. देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा की 84 सीटें एससी के लिए, जबकि 47 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. विधानसभाओं में 607 सीटें एससी और 554 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. इसलिए सबकी नजर दलित वोट बैंक पर लगी हुई है.
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